ऑनलाइन सट्टेबाजी: सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, खेल और फिल्म जगत के कई चर्चित चेहरे क्यों कर रहे हैं जुए का प्रचार?

देश में ऑनलाइन सट्टेबाजी को लेकर बहस एक बार फिर तेज़ हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि आखिर क्यों अब तक इस बढ़ते खतरे पर ठोस कार्रवाई नहीं की गई। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह केवल जुआ नहीं, बल्कि करोड़ों युवाओं की ज़िंदगी से खिलवाड़ है — और इसके पीछे सिर्फ ऐप नहीं, बल्कि बड़े-बड़े चेहरे भी ज़िम्मेदार हैं।

‘क्रिकेट के भगवान’ भी क्यों बने सट्टेबाज़ी के प्रचारक?
माना जाता है कि खेल खिलाड़ियों की प्रेरणा का जरिया होते हैं। लेकिन जब उन्हीं चेहरों को ऑनलाइन सट्टेबाज़ी प्लेटफॉर्म्स का प्रचार करते देखा जाता है, तो सवाल उठना लाज़मी है। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, “ये लोग इसलिए प्रचार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें भी पता है कि आईपीएल जैसे इवेंट्स की आड़ में हजारों लोग सट्टा खेल रहे हैं।”

तेलंगाना में अकेले 1000 से ज्यादा आत्महत्याएं
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के ए पॉल ने दावा किया कि तेलंगाना में सट्टेबाज़ी ऐप की लत से जुड़ी घटनाओं में 1023 लोगों ने जान दे दी। उनका कहना था कि यह मुद्दा सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है

फिल्मी दुनिया से 25 बड़े नाम शामिल
पॉल ने अपनी याचिका में बताया कि बॉलीवुड और टॉलीवुड से जुड़े कम से कम 25 बड़े सितारे इन प्लेटफॉर्म्स का प्रचार कर रहे हैं। ये वही चेहरे हैं जिन्हें युवा आदर्श मानते हैं, लेकिन जब वही जुए को “मनोरंजन” की तरह पेश करें तो इसका समाज पर क्या असर होगा, ये समझना मुश्किल नहीं।

सिर्फ कानून से हल नहीं निकलेगा: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि केवल कानून बना देने से समस्या खत्म नहीं होती। उन्होंने कहा, “मर्डर के लिए भी कानून है, लेकिन क्या हम मर्डर रुकवा पाए हैं?” कोर्ट का कहना था कि जब तक सामाजिक और मानसिक बदलाव नहीं होंगे, तब तक ऐसे प्लेटफॉर्म्स से नुकसान होता रहेगा।

सरकार से मांगा जवाब, आगे बढ़ सकती है जांच
फिलहाल कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। अगर जरूरी समझा गया, तो आने वाले समय में राज्य सरकारों को भी जवाब देना होगा।

ऑनलाइन सट्टेबाज़ी अब केवल एक कानूनी या तकनीकी चुनौती नहीं रही, यह सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी का मामला बन चुका है। जब समाज के प्रेरणास्रोत खुद ऐसे प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा दें, तो जिम्मेदारी और भी बड़ी हो जाती है। अब देखना यह होगा कि सरकार और अदालत मिलकर इस पर क्या ठोस कदम उठाते हैं।

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