
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने हाल ही में महाराष्ट्र दौरे के दौरान एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने लोकतंत्र के तीनों स्तंभ—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की समानता पर जोर दिया। उनके इस बयान ने प्रोटोकॉल और संवैधानिक मर्यादाओं को लेकर एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
महाराष्ट्र में स्वागत और प्रोटोकॉल पर सवाल
सीजेआई बीआर गवई ने महाराष्ट्र दौरे के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जब एक महाराष्ट्र का व्यक्ति भारत का मुख्य न्यायाधीश बनता है और पहली बार राज्य का दौरा करता है, तो राज्य के प्रमुख अधिकारियों—मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक या मुंबई पुलिस आयुक्त—की अनुपस्थिति सवाल खड़े करती है। उन्होंने कहा कि यह एक सोचने का विषय है कि क्या ऐसे मौकों पर इन उच्चाधिकारियों की उपस्थिति आवश्यक नहीं मानी जानी चाहिए।
संवैधानिक मूल्यों की अहमियत
गवई ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों स्तंभ समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं और इनकी मर्यादा का पालन हर स्तर पर होना चाहिए। उन्होंने प्रोटोकॉल के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर किसी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति अपने गृह राज्य का दौरा करता है, तो उसका स्वागत करना न केवल सम्मान का विषय है, बल्कि संवैधानिक परंपराओं का पालन भी है।
समाज में संदेश का महत्व
सीजेआई गवई के इस बयान को लेकर अब राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कई विश्लेषकों का मानना है कि यह मुद्दा केवल सम्मान से अधिक, संवैधानिक परिपक्वता और मर्यादा के पालन से जुड़ा हुआ है।
उनका यह बयान न सिर्फ प्रोटोकॉल पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि लोकतंत्र में हर स्तंभ का अपना महत्व है और उसका सम्मान करना हमारी संवैधानिक जिम्मेदारी है।