
नई दिल्ली | 1 मई 2025
मोदी सरकार ने एक ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित निर्णय लेते हुए 2025 में जातीय जनगणना कराने का ऐलान किया है। यह फैसला बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक के दौरान लिया गया। सरकार के इस कदम का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय को मजबूत करना बताया गया है। हालांकि, इस फैसले को लेकर देशभर में राजनीतिक हलकों में बहस तेज हो गई है।
क्या है जातीय जनगणना?
जातीय जनगणना का अर्थ है — देश की आबादी को उनकी जातियों के आधार पर दर्ज करना। भारत में पिछली बार जातीय जनगणना 1931 में हुई थी। उसके बाद से यह मुद्दा लंबे समय से सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के एजेंडे में शामिल रहा है, लेकिन सरकारें इस पर स्पष्ट रुख नहीं ले सकीं।
सरकार ने क्या कहा?
गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि,
“सरकार इस बार की जनगणना में जाति आधारित आंकड़े इकट्ठा करेगी, ताकि नीतियों का लाभ सही वर्गों तक पहुंचे। ये डेटा पूरी तरह डिजिटल रूप से एकत्र किया जाएगा और आम जनता की गोपनीयता का विशेष ध्यान रखा जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि इससे OBC, SC, ST और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को अधिक न्यायसंगत लाभ देने में सहायता मिलेगी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
सरकार के इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी है:
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “यह जनगणना बहुत पहले होनी चाहिए थी। समाज के पिछड़े वर्गों को जब तक उनकी वास्तविक संख्या के आधार पर भागीदारी नहीं मिलेगी, तब तक सामाजिक न्याय अधूरा है।” वहीं, कांग्रेस पार्टी ने इसका स्वागत करते हुए सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की है कि आंकड़ों का उपयोग “राजनीतिक फायदा” के लिए नहीं किया जाए।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
जातीय जनगणना की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर #CasteCensus2025 ट्रेंड कर रहा है। कई सामाजिक संगठनों ने सरकार के फैसले की सराहना की है। वहीं कुछ लोगों ने चिंता जताई कि इससे जातिवाद को बढ़ावा मिल सकता है।
संभावित लाभ
नीतियों में पारदर्शिता और प्रभावशीलता पिछड़े वर्गों की स्थिति का स्पष्ट आंकलन आरक्षण व्यवस्था में सुधार सामाजिक योजनाओं के बेहतर वितरण
चुनौतियाँ और जोखिम
डेटा की गोपनीयता को लेकर चिंता राजनीतिक दलों द्वारा आंकड़ों का संभावित दुरुपयोग जातिगत पहचान की राजनीति को बल
निष्कर्ष
जातीय जनगणना 2025 मोदी सरकार का एक साहसिक और ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। यह निर्णय यदि पारदर्शी ढंग से लागू होता है तो यह भारत की सामाजिक संरचना और कल्याणकारी नीतियों में नया अध्याय जोड़ सकता है। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ाती है और जनता का इसमें कितना विश्वास कायम होता है।