
बिहार की सड़कों पर अब सियासत सिर्फ भाषणों से नहीं, बल्कि कंधे से कंधा मिलाकर चलने से हो रही है। सफेद टी-शर्ट पहने राहुल गांधी, और उनके साथ कन्हैया कुमार—यह जोड़ी रविवार रात से ही चर्चा में है। 7 अप्रैल को जब बेगूसराय की धरती पर ‘पलायन रोको, रोजगार दो’ यात्रा की शुरुआत हुई, तो वह सिर्फ एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा इमोशनल कनेक्ट बन गया जिसने युवाओं की धड़कनों को छुआ।
राहुल का बदला हुआ अंदाज़
रविवार रात राहुल गांधी ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा किया, लेकिन इस बार उनका अंदाज़ जुदा था। कोई औपचारिकता नहीं, कोई भाषणबाज़ी नहीं। सिर्फ एक साफ संदेश—”बिहार के युवाओं, अब वक्त है कंधे से कंधा मिलाकर चलने का।” सफेद टी-शर्ट में दिख रहे राहुल गांधी का यह अवतार लोगों को सीधा और आत्मीय लगा।
कन्हैया का घरेलू मैदान, राहुल का भरोसा
कन्हैया कुमार के गृहनगर में कांग्रेस की यह आक्रामक मौजूदगी न केवल एक रणनीति है, बल्कि एक मैसेज भी—बिहार अब सिर्फ वादों से नहीं बदलेगा, उसे ज़मीन पर उतरकर समझना होगा। राहुल और कन्हैया की जोड़ी ने इस यात्रा को सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक आंदोलन का रूप देने की कोशिश की है।
पलायन और बेरोजगारी पर सीधा वार
इस यात्रा की थीम है – “पलायन रोको, रोजगार दो”। बिहार से दूसरे राज्यों में मजदूरी के लिए जाते युवाओं की पीड़ा अब एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुकी है। राहुल गांधी की यह यात्रा उन युवाओं की आवाज़ बनने की कोशिश है, जिन्हें अब तक सिर्फ आंकड़ों में गिना गया।
बेगूसराय बना सियासी प्रतीक
बेगूसराय अब सिर्फ एक जिला नहीं, बल्कि बदलाव की एक प्रयोगशाला बन चुका है। यहां की गलियों में जब राहुल और कन्हैया साथ-साथ निकले, तो सिर्फ पोस्टर नहीं, लोग भी पीछे-पीछे चलने लगे।
क्या यह यात्रा केवल एक रैली है या बिहार की राजनीति में एक टर्निंग पॉइंट? वक्त बताएगा, लेकिन एक बात साफ है अब सफेद टी-शर्ट वाले राहुल गांधी सिर्फ भाषण देने नहीं, बदलाव लाने निकले हैं।