
देश के कई हिस्सों में गर्मी के बीच अचानक आई तेज बारिश ने लोगों को राहत दी है, लेकिन इसी के साथ एक बड़ा सवाल भी खड़ा हो गया है—क्या इस साल मॉनसून समय से पहले आ गया है? और अगर हां, तो क्यों?
मौसम विभाग की ताज़ा जानकारी के मुताबिक, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून इस बार सामान्य समय से करीब 8 दिन पहले ही यानी 24 मई 2025 को केरल पहुंच चुका है। यह साल 2009 के बाद पहली बार है जब मॉनसून इतनी जल्दी दस्तक दे गया है। आमतौर पर मॉनसून केरल में 1 जून के आसपास पहुंचता है, लेकिन इस बार इसकी रफ्तार ने सबको चौंका दिया।
मॉनसून की तेज़ रफ्तार: कहां-कहां पहुंचा?
केरल से आगे बढ़ते हुए मॉनसून ने न केवल लक्षद्वीप, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों को भिगोया है, बल्कि बंगाल की खाड़ी, मिजोरम और गोवा जैसे इलाकों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले 2-3 दिनों में मॉनसून मध्य भारत, आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों तक भी पहुंच जाएगा।
जल्दी मॉनसून का कारण क्या है?
इस साल मॉनसून की जल्दी आमद के पीछे अरब सागर के ऊपर बने कम दबाव के क्षेत्र और ट्रफ लाइन को अहम माना जा रहा है। ये दोनों मौसमी कारक नमी को भारतीय उपमहाद्वीप की ओर खींचने में सहायक बने हैं। इसके चलते वातावरण में नमी और बादलों की गतिविधि बढ़ी, जिससे मॉनसून की चाल तेज हो गई।
विशेषज्ञों के अनुसार, मॉनसून की शुरुआती रफ्तार 13 मई को दक्षिणी अंडमान सागर से शुरू हुई, जो सामान्य समय से लगभग एक हफ्ता पहले थी। इसके बाद मॉनसून तेज़ी से पश्चिम की ओर बढ़ा और केरल होते हुए मुंबई और दिल्ली तक पहुंच गया।
क्या एल नीनो का असर खत्म हो गया है?
एल नीनो और दक्षिणी दोलन (ENSO) जैसे बड़े वैश्विक मौसमी पैटर्न भी इस बदलाव में भूमिका निभाते हैं। इस बार की परिस्थितियां मॉनसून के अनुकूल देखी गई हैं, जिससे इसके समय से पहले सक्रिय होने की संभावना मजबूत हुई।
क्या इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा?
भले ही मॉनसून ने शुरुआती दस्तक दे दी हो, लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इसके पूरे देश में समान रूप से फैलने और बारिश के वितरण को लेकर फिलहाल कोई ठोस भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। विशेषज्ञों का मानना है कि मॉनसून की आगे की प्रगति पर नज़र रखना ज़रूरी है ताकि पूर्वोत्तर मानसून को लेकर भी सटीक जानकारी मिल सके।
इस साल समय से पहले आए मॉनसून ने जहां गर्मी से राहत दी है, वहीं किसानों और मौसम वैज्ञानिकों के लिए यह एक नया संकेत भी है। जलवायु में आ रहे बदलावों और वैश्विक मौसम पैटर्न्स की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आने वाले हफ्तों में मॉनसून का रुख और असर तय करेगा कि ये राहत का पानी बनेगा या आफत की बारिश।